कुमार विश्वास की कविताएं
अब तो घबराके ये कहतें है के मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो कहाँ जाएंगे ।
आप महफ़ूज़ है तो एक काम करे
बीमार कि मदद बग़ैर दाम करे #गै़ब
है मौजूद हवा फिर भी टूट रही है सॉंसे तड़पकर
यह उन पेड़ों कि बद्दुआएँ है जो कट गए सड़कपर #गै़ब
कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया
बात निकली, तो हर इक बात पे रोना आया
सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में,
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे,
~ डॉ. कुमार विश्वास
हादसों कि ज़द पे है तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के खौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
Haal mera mujhse pooch rahe hain woh
Zakhm hue hain taaza Aur bhi marham se.
Ghar se nikalne mein khauf sa lagta hai
Khoob hain hum waakif shaher ke mausam se
-Anjum Rahbar.