आपके पर-दादाजी ने उस घर और दूकान को बड़े प्यार से अपने पिताजी के नाम पर रखा था "रामभरोसे निवास"
अब धीरे-धीरे इस किरायेदार ने अपने रंग दिखाए, पहले किराया देना बंद कर दिया। फिर दूकान पर कब्ज़ा जमा लिया। कुछ महीनो में उसने कुछ गुंडों की मदद से आपके घर पर भी कब्ज़ा कर लिया। मजबूरन आपको वह घर छोड़ के जाना पड़ा। अब घर का नाम भी "रामभरोसे निवास" से बदलकर "औरंगज़ेब महल" हो चूका था।
एक बड़ी लम्बी कानूनी लड़ाई की मदद से वर्षों बाद आपके दादाजी को वो घर वापस मिलता है। अब आप ही बताइए क्या आप उस घर का नाम "औरंगज़ेब महल" ही रहने देंगे या फिर पर-दादाजी को श्रद्धांजलि देते हुए उसका नामकरण फिर से "रामभरोसे निवास" करेंगे।
आप किसके इतिहास के अपमान की बात कर हैं?
इतिहास का अपमान तो तब भी हुआ था जब विदेशी लुटेरों ने हमारे शहरों के नाम बदले थे। तब क्वोरा, फेसबुक या व्हाट्सएप्प नहीं था शायद इसलिए किसी को उस वक़्त इतिहास के अपमान की चिंता नहीं हुई
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